छत्तीसगढ़ के लोकगीत म गांधी

देंवता बन के आये गांधी, देंवता बन के आये.
हमरे देस के अन धन ला, जम्मा जम्मो लूटिन
परदेसियन के लड़वाए ले, भाई ले भाई छूटिन
देस ला करके निचट निहत्था, उल्टा मारैं सेखी
बोहे गुलामी करत रहेन हम, उंखरे देखा देखी
तैं आंखी ला हमर उघारे, जम्मो पोल बताए
गांधी देंवता बन के आये..
तोर करनी ला कतेक बतावों, सक्ति नइए भारी
देस बिदेस अउ गांव गांव मा, तोरेच चरचा चारी
तैं उपास कर करके मउनी बनके करे तपसिया
साल बछर धरे अहिंसा, पथरा ला टघलाये.
गांधी देंवता बन के आये.. (छत्तीसगढ़ी)

काठियावाड़ राज चो देवान रलो, गांधी मोहनचंद
हुनचो घरे बेटा जनमलो, गांधी मोहनचंद.
हो गांधी मोहनचंद ..छेर छेर..
बाढ़लो उड़लो पाठ पढ़लो, मनुज धरमकारी
साहेम मन चो गोठ सुनुन, धक्का लागली भारी
हो धक्का लागली भारी ..छेर छेर..
देस भर चो दुख के दखुन, गांधी फिरलो घरे
पेट भितरे चिन्ता ढापली, आईग असन बरे
हो आइग असन बरे ..छेर छेर.. (हलबी)

जय जय भारत माता चो, जय जस बलुक इया हो
महात्मा गांधी बबा चो, सपाए जय बलुक दिया हो
हामी हिन्दुस्तानी भाई, नी जानू लन्द फंद काई
सत धरम चो धुनकाण्ड के धरून होसुले ठीया हो .(हलबी)

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